Thursday, July 28, 2011

खुदरा में विदेशी निवेश : किसको नफा, किसे नुकसान

उमेश चतुर्वेदी
खुदरा व्यापार में भी विदेशी निवेश की मंजूरी देकर भारत सरकार ने एक बार फिर बहस को जन्म दे दिया है। उदारीकरण की शुरूआत के ठीक बीस साल बाद रिटेल सेक्टर को विदेशी निवेश के लिए खोलने के बाद बहस एक बार फिर वही है कि देशभर में फैले करीब डेढ़ करोड़ खुदरा दुकानदारों का क्या होगा। इतनी संख्या तो खुद भारत सरकार ही मानती है। लेकिन यह संख्या इससे और ज्यादा ही है। क्योंकि देशभर में रेहड़ी-पटरी वाले व्यापारियों का अभी तक कोई मुकम्मल आंकड़ा तैयार नहीं किया जा सका है। लेकिन अगर भारत सरकार के बिजनेस पोर्टल की ही मान लें तो भारत भर में फैले करीब डेढ़ करोड़ खुदरा दुकानदार तो हैं हीं और उनके साथ करीब नौ करोड़ लोगों की जिंदगी भी जुड़ी है।
 इसके साथ ही अगर रेहड़ी-पटरी वालों को भी जोड़ दें तो यह संख्या अनुमान से भी कहीं ज्यादा हो सकती है। जाहिर है उनकी रोजी-रोटी का जरिया खुदरा व्यापार ही है। उदारीकरण की शुरूआत के ठीक बीस साल बाद अगर रिटेल सेक्टर को विदेशी निवेश के लिए खोला जाएगा और इतनी बड़ी आबादी की रोजी-रोटी के सरोकारों को लेकर विचार नहीं किया जाएगा तो सवाल उठेंगे ही।
बहरहाल खुदरा क्षेत्र को विदेशी निवेश के बाद भारत में आने वाले बदलावों की चर्चा से पहले इससे जुड़े आंकड़ों पर विचार करना जरूरी है। रिटेल सेक्टर में विदेशी निवेशी को खोलने की मांग तो बरसों से हो रही है। इसकी वजह है भारत का विशाल मध्यवर्ग और तेजी से बढ़ती उसकी खरीद क्षमता। पिछले साल दुनिया की जानी-मानी रिसर्च कंपनी प्राइसवाटर हाउसकूपर ने भारत के रिटेल सेक्टर को लेकर एक अध्ययन किया था। मजबूत और स्थिर 2011 शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट में उसने अनुमान लगाया था कि भारत का खुदरा क्षेत्र 2014 तक बढ़कर 900 अरब डॉलर तक पहुंच जाएगा। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत में अभी खुदरा कारोबार महज 500 अरब डॉलर का है। प्राइसवाटर हाउसकूपर ने अनुमान लगाया है कि 2010 से 2014 तक भारतीय रिटेल सेक्टर में औसतन चार फीसदी की सालाना वृद्धि होगी। प्राइसवाटर हाउस कूपर की यह रिपोर्ट मुख्यत: एशिया के खुदरा क्षेत्र पर केंद्रित है। इसके मुताबिक भारत का खुदरा क्षेत्र चीन और जापान के बाद तीसरे नंबर पर आता है। इसी रिपोर्ट के मुताबिक चीन में खुदरा क्षेत्र 2014 तक 4,500 अरब डॉलर के आंकड़े को पार कर जाएगा यानी चीन का खुदरा क्षेत्र भारतीय खुदरा क्षेत्र से पांच गुना ज्यादा होगा।
तीन साल पहले भारत सरकार ने भी देश के खुदरा बाजार पर अध्ययन कराया था। भारत सरकार के व्यापार पोर्टल के मुताबिक तब तक उपलब्‍ध अनुमानों के मुताबिक भारत का खुदरा बाजार 1,330,000 करोड़ रु. का था। जिसमें खाद्य और किराना बाजार की हिस्सेदारी सबसे ज्यादा यानी 7,92,000 करोड़ रु.की आंकी गई थी। यानी यह हिस्सेदारी भारत के कुल खुदरा बाजार में करीब 59.5 प्रतिशत बैठती है। इसके साथ ही कपड़े, वस्‍त्र उद्योग और फैशन संबंधी चीजों की खुदरा बाजार में हिस्सेदारी 9.9 प्रतिशत के साथ करीब 1,31,300 करोड़ रु. बैठती है। जो भारत के खुदरा बाजार में दूसरे स्थान पर है। हालांकि यह पूरा का पूरा ब्लॉक असंगठित है। आज संगठित किए जाने के नाम पर खुदरा बाजार को खोलने की जो हिमायत खुद सरकार कर रही है, उसका ही आंकड़ा बताता है कि भारत के खुदरा क्षेत्र का एक ब्लॉक ऐसा भी है, जो पहले से ही कहीं संगठित रहा है। इसमें टाइम वीयर की 48.9 प्रतिशत हिस्‍सेदारी और फुटवीयर (48.4 प्रशितत हिस्‍सेदारी है।
देश को उदारीकरण की तरफ ले जाने वाले प्रधानमंत्री और कांग्रेस के साथ ही भारतीय बुद्धिजीवियों का एक बड़ा वर्ग मानता है कि खुदरा क्षेत्र को खोलने के बाद भारत के किसानों की हालत सुधरने वाली है। गुरूचरण दास जैसे लोगों का कहना है कि जिन देशों का खुदरा क्षेत्र संगठित क्षेत्र के हवाले कर दिया गया है, वहां के सुपर मार्केट आमतौर पर किसानों से सीधे अनाज और सब्जियां खऱीदते हैं। फिर फ्रिज्ड करके उसे अपने सुपर मार्केटों तक पहुंचाते हैं। और अपने रिटेल स्टोर के जरिए उपभोक्ताओं को बेचते हैं। यानी बिचौलिए की वहां भूमिका खत्म हो जाती है। चूंकि किसानों से खुदरा चेन वाली कंपनियां सीधे जिंस खऱीदेंगी और उन्हें बेचेंगी तो किसानों को उनकी फसल की कहीं ज्यादा कीमत मिलेगी और उनके जरिए भारतीय उपभोक्ताओं को दस-बीस फीसदी कम कीमत पर बेचा जाएगा। यानी खुदरा क्षेत्र के संगठित होने से फायदा किसानों और उपभोक्ताओं-दोनों को होने की उम्मीद है। खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को खोलने का एक तर्क यह भी दिया जा रहा है कि भारत में अनाज और सब्जियों के रख-रखावा का उचित इंतजाम नहीं होने के चलते करीब 20 से 30 फीसदी तक अनाज और सब्जियां बरबाद हो जाती हैं। खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के बाद आने वाली कंपनियां भंडारण का उचित इंतजाम करेंगी और यह बरबादी रूकेगी। वैसे एक फायदा तो यह भी गिनाया जा रहा है कि खाद्यान्न की महंगाई दर में बढ़ोत्तरी के लिए वायदा कारोबार और उससे जुड़ी जमा खोरी सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश के बाद वायदा कारोबारियों पर लगाम लगेगी। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वायदा कारोबारियों को मौका अधिकारियों की ढिलाई के बाद ही मिलती है। इसकी तरफ सरकारों ने अब तक मुकम्मल ध्यान नहीं दिया है।
विदेश में बड़े सुपरमार्केट आम तौर पर किसानों से सीधे खाद्यान्न खरीदते हैं, कोल्ड स्टोर में उनका भंडारण करते हैं, एयरकंडीशंड गाडि़यों में उनका परिचालन करते हैं और एयरकंडीशंड स्टोरों में उन्हें सीधे उपभोक्ताओं को बेचते हैं। यह कोल्ड चेन खुले स्थान में पड़े खाद्यान्न की बर्बादी को रोकती है। भारत में कुल खाद्यान्न उत्पादन का 20 से 30 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है। आधुनिक रिटेल स्टोर के आने के बाद खाद्यान्न के दामों में 15-20 फीसदी कमी आने और किसानों की आय में 10 से 20 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है। लेकिन हमें करीब डेढ़ दशक पहले की पंजाब की उस घटना को नहीं भूलना चाहिए। पंजाब सरकार ने एक विदेशी कंपनी से समझौते के बाद राज्य के किसानों को टमाटर बोने के लिए प्रोत्साहित किया था। तब कंपनी ने वादा किया था कि वह किसानों से उचित मूल्य पर टमाटर खऱीदेगी और अपनी प्रोसेसिंग यूनिट में उससे केचप और दूसरी चीजें तैयार करेंगी। लेकिन जब टमाटर का बंपर उत्पादन होने लगा तो कंपनी तीस पैसे प्रति किलो की दर से टमाटर मांगने लगी। तब किसानों ने कंपनी को टमाटर बेचने की बजाय सड़कों पर ही फैला दिए थे। यानी किसानों को वाजिब हक कहां मिल पाया था।
किसानों और उपभोक्ताओं को फायदा होने का तर्क देने वाले भूल जाते हैं कि देश में जिन करोड़ों लोगों की जीविका गली-मुहल्ले में रेहड़ी-पटरी लगाकर सब्जी-भाजी बेचकर चलती है, या गली के मुहाने की दुकान के सहारे रोजी-रोटी चल रही है, रिटेल चेन बढ़ने के बाद उनका क्या होगा। वैसे ही इस देश की आबादी का एक बड़ा वर्ग ऐसा है, जिसके लिए नौकरियां पाना आसान नहीं है। रोजगार की हालत वैसे ही अभी तक खराब है। इस देश में बेरोजगारी जमकर है। भारत सरकार के ही आंकड़ों का हवाला दें तो भारत में इस समय बेरोजगारी दर 10.70 फीसदी है। जाहिर है कि जब खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश होगा तो इसमें बढ़ोत्तरी हो सकती है। क्योंकि जब घर के पास एयरकंडिशंड दुकानों में सस्ते सामान मिलेंगे तो रेहड़ी वालों को कौन पूछेगा, बगल के किराना स्टोर पर कौन जाएगा। यह सच है कि बिना विदेशी निवेश के ही रहेजा, टाटा, फ्यूचर, पीरामल, रिलायंस और भारती जैसे ग्रुपों ने रिटेल स्टोरों की श्रृंखला शुरू कर दी है। जाहिर है कि विदेशी निवेश के बाद इन पर भी दबाव बढ़ेगा।

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